Authors : डाॅ. अरविन्द त्रिपाठी
Page Nos : 33-36
Description :
किसी भी समय व स्थान के इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों की सर्वोत्तम विष्वसनीय स्त्रोत माना जाता हैं। सामान्यतः पाषाण खण्ड ,पाषाण स्तम्भ ,ताम्रपत्र ,धर्म स्मारक, राजमहल, मुद्रा, देवालय स्मारक आदि में अंकित अभिलेख किसी भी क्षेत्र के राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक पक्ष का मूक गवाह होता हैं। अभिलेखों से न केवल राजकीय औ प्रषासनिक कार्यों की जानकारी मिलती हैं। बल्कि राजाओं की, वषावलियां, दानषीलता व विजयोत्सव का भी सटीक ज्ञान प्राप्त होता हैं। ये अभिलेख प्राचीन भारत में राजाओं व सामंतों द्वारा भिन्न-भिन्न अवसरों पर जारी किए जाते थे। यहाँ के प्राचीन भारतीय अभिलेख प्रायः ब्राह्मी , खरोष्ठी और नागरी लिपि में अंकित हैं। इन अभिलेखों पर प्रायः तिथि का उल्लेख किया जाना इतिहास के कालक्रम निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता हैं। प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में अगर अभिलेखों का मार्गदर्षन नहीं होता तो निष्चित रूप से इतिहासकार वास्तविक इतिहास के कुछ विषेष पहलूओं से वंचित रह जाते अभिलेख वास्तव में प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोतों में हमेषा अग्रणी और विष्वासनीय रहे हैं।