Authors : बिपिन विहारी
Page Nos : 261-264
Description :
आचार्य राममूर्ति मूलतः एक शिक्षक थे। उनका सपना जननायक बनने का नहीं था, बल्कि वह चाहते थे कि समाज परिवर्तन के काम में लगने वाले ज्यादा से ज्यादा सिपाही तैयार हों। उन्होंने अपना सारा जीवन ऐसे लोगों को तैयार करने में लगा दिया। जहाँ भी ऐसे लोगों के मिलने की संभावना होती, आचार्य जी वहाँ पहुँचने की कोशिश करते। उनके कुछ मतभेद तो अपने सर्वोदय आंदोलन के साथियों से भी थे। जब जयप्रकाश नारायण ने बिहार में छात्र आंदोलन को अपना समर्थन दिया तथा बाद में संपूर्ण क्रांति का आंदोलन शुरू किया तो आचार्य जी ने सबसे पहले उसका केवल समर्थन ही नहीं किया, बल्कि पहले सिपाही की तरह उसमें कूद पड़े। उन्होंने संपूर्ण क्रांति के भाष्य का जिम्मा खुद संभाल लिया।आचार्य राममूर्ति भारतवासियों को शुद्ध भारतीय संस्कृति का अनुगामी बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि षिक्षा बालक का सर्वांगीण विकास करने के साथ-साथ समाज की आवष्यकताआंे एवं समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट करे, जिससे देष विकसित हो और आत्म निर्भर बने।एक कुषल षिक्षाविद् एवं कुषल प्रषासक के रूप में आचार्य राममूर्ति ने जिस नवाचारी रूप में षिक्षा का स्वरूप विकसित किया, वह वास्तव में उनके गहन चिन्तन-मनन का विषय है।